१५ अगस्त का दिन बहुत ही सुहाना था ,,,,सभी लोगो में झंडा फहराने को लेकर बहुत ही उत्सकता थी ,,,उस दिन गावं के लगभग लोग स्कूल आये थे ,,,उस दिन तो वो बच्चे भी स्कूल आये थे जो कभी स्कूल आना नहीं चाहते ,,,,१५ अगस्त सोमवार को था और ठीक एक दिन पहले यानि रविवार को सभी लोग ओबरा बाज़ार करने गए थे "रक्षा बंधन "के लिए ,,,,और स्कूल के लगभग बच्चो ने मुझे राखी बांधी और मीठा खिलाया ,,,हम लोगो ने जैसे ही झंडा फहराया और लादू बच्चो वैसे ही जोरदार बारिश शुरू हो गई और घंटो तक बारिश होती रही,स्कूल में लडकियों ने अपने लोकगीत सुनाये ,,बच्चो ने कविता,गाना ,कहानी ,सुनाते रहे ,,,,इतना मस्ती का माहौल हो गया था के कुछ बुजुर्ग लोगो ने भी कहानी सुनाई,,,,,,,,,कुछ फोटो मै लगा रही हूँ जिसे बच्चो ने ही खीचा था,
Tuesday, October 25, 2011
बात आगे की
एक लम्बे समय से मैं ब्लॉग पर कुछ भी नहीं लिख पाई ,,,,,,अपने सभी सहयोगियों से मैं छमा पार्थी हूँ
Monday, August 8, 2011
जहा तिरंगा पहली बार लहराया जायेगा
क्यों न ये १५ अगस्त कुछ खाश तरीके से मनाया जाये ,,,,आजादी के ६५ वर्षगाठ पर हम उन लोगो के साथ रहे जो आज़ादी का मतलब ही नहीं जानते है ,,,हम १५ अगस्त को ऐसे लोगो के साथ रहे जिन्होंने आज तक कभी भी तिरंगा नहीं लहराया है,,,जिनके लिए देश उनका गावं ही है उन्हें भारत की कोई खबर नहीं है ,,मुझे तो बच्चो को भारत का नाम रटवाना पड़ता है,,,,आप सभी अपनी जिन्दगी में कुछ रोमांचक करना चाहते होंगे,,,तो मेरा यकीं मानिये ये काम भी किसी रोमांच से कम नहीं होगा,,,,मै आप सभी को इस जगह आने के लिए निमंत्रित करती हो ,,,,,,जहा तिरंगा पहली बार लहराया जायेगा
Sunday, August 7, 2011
एक बहुत ही पुरानी और पिछड़ी हुई नस्ल
मनुष्यों की एक बहुत ही पुरानी और पिछड़ी हुई नस्ल के साथ आज कल मै रह रही हूँ,,जिसे अभी तक technology का वैरस नहीं लगा है,और बजार बहुत ही सिमित मात्रा में अपनी पहुच बना पाया है,,,जिन संसाधनों के बगैर नेई नसल के लोग जी भी नहीं पाएंगे उन संसाधनों को ये पुराणी नस्ल ने ना ही देखा है ना ही उनके बारे में सुना है,,यहाँ रहते हुए मुझे ३ महीने होने जा रहे है और अक्सर मै सोचती हूँ की अगर इनके घरो में से कुछ बाज़ार के सामान निकाल दे तो पक्का २०० या ३०० साल पहले के आदिवासी ऐसे ही रहते होंगे,
कभी कभी तो मुझे लगता है की पुरात्तव बिभाग को यही बुलवा लेना चाहिए ताकि वो अपनी शोध आदिवासियों के बारे में पूरी कर पाए ,,,,,,,जब मै यहाँ आई थी तो मैंने इसे सिर्फ एक पिछड़ा हुआ इलाका माना था ,,लेकिन यहाँ आकर पता चल रहा की जैसे मैंने हड़प्पा या मोहनजोदड़ो जैसे किसी चीज की खोज कर ली है,,,,,,और मेरे आश्चयर का ठिकाना ही नही रहता है,,,,,,,,,,,,,,मुझे मालूम है की कोई अकेली जगह नहीं है जहा मै रह रही हूँ ऐसी हजारो गावं है यहाँ ,,,,मेरे दिमाग में तो तो ये सब देख के यही आता है की ये" ये भारत की असफल लोकतान्त्रिक व्यवस्था "का जीता जाता साबुत है ,,,,,और इस व्यवस्था ने एक भारत में हजारो कई ऐसे नसले पैदा कर दी है जो अव्यवस्था का कारण है,,,,,,,,,,,,,,,,इसे तो मै भारत का बिकलांग विकाश ही कहना पसंद करुँगी '
Sunday, July 3, 2011
दूषित पानी पीने को मजबूर गाववाले
,,,"रेनू" नदी सोनभद्र में है ,,रेनू नदी के किनारे बसे हजारो गाव इसी नदी पर जीवित है ,,वो केवल नदी के पानी का इस्तेमाल फसलो के के लिए ही नहीं करते बल्कि उनकी सारी पानी की जरुरतो को भी यही नदी पूरा करती है ,,,चाहे पीने के लिए,खाना बनाने के लिए ,बर्तन धोने के लिए ,,चाहे जिस भी काम का इस्तेमाल हो पानी नदी से ही आता है,,इन गावो में एक भी हैंडपंप नहीं है ,,,जिससे इन गाव वालो को नदी का पानी पीना पड़ता है,गाव वालो ने नदी के किनारे ही छोटा सा गड्डा खोदा है जिससे वो पानी पीने के लिए लाते है ,,,बाकि के दिनों में तो पानी ज्यादा दुषित नहीं रहता है लेकिन बारिश के दिनों में पानी बहुत ही गन्दा हो जाता है,,जिसे गाव वालो को पीना पड़ता है जिससे वहा बारिश के समय लगभग लोगो की तबियत ख़राब रहती है ,,इस वक्त अधिकतर बच्चो को बुखार रहता है और चेचक का जबरदस्त प्रकोप है,,लेकिन वहा न तो कोई डॉक्टर है नहीं कोई दवा ,,,बच्चो की तबियत इतनी जबरदस्त खराब रहती है की वो बिस्तेर से ४ ५ दिनों तक उठ पाने की भी स्थिति में नहीं रहते है ,,चोपन ब्लॉग के इन गावो में कभी भी अनम नहीं आती है,किसी भी तरह के कोई भी अधिकारी इन गावो में नहीं आते है,दूषित पानी पीने से लोग लम्बे समय तक अनेको बीमारियो से जूझते रहते है ,
तू ही मंदिर मश्जिद तू ही पांच प्रयाग ,,,तू ही सीढ़ी दार खेत तू ही रोटी दाल ,,,नदी तू बहती रहना ,नदी ही जीवन का आधार होती है,बिना नदी के जीवन की कल्पना शायद हम नहीं कर सकते है,,,लेकिन इस आधुनिक युग में शायद नदी बड़े शहरों में एक शो मात्र रह गई है,,उसमे शहर की सारी गंदगी डाली जाती है,,,जिससे नदी दिन ब दिन मरती जा रही है,,,कई नदियों को अब नाले के रूप में देखा जा रहा है ,वाराणसी में वरुणा नदी तो पूरी तरह से ही नाला का रूप ले चुकी है ,,आगरा में यमुना की भी यही हालत है,,इन नदियों का पानी पीना तो दूर छुना भी लोग पसंद नहीं करते ,,,,,लेकिन अभी कई ऐसी नदिया है जो कई गावो के अस्तित्व को ही बचाए रक्खा है
Saturday, July 2, 2011
bal repoter,60 लाख का पुलइया अमरसोता
60 लाख का पुलइया अमरसोता
गावं के बीच में एक बढ़े नाले में पुलिया बनाया गया है , जिसमे पुलिया में कहीं कहीं पर boldar व् सीमेंट chhoda दिया है ttha draren bhee प्डी gyi है jisse kbhi bhi koi bhi gir shaktye है aur kisee ko bhi khtra ho Shakta है jise banvaya है Manoj Tiwari thekethar kam krne walon का majduree 80rupye tha our mistriyon का 130rupye tha aur bolder jangal का lagaya गया है ,jangal के patthar kchcheen pathar है thoda upar uthaake cchod dene se neeche gir kar fat jata है sochiye vo bolder है aur balu “Renu ” nadi ke kinare se nav men laye karate the chukin usme mittee mix hai aap hee btaiye mittee wale balu men boldar pkde ga ki nheen ?aur pulliya ke kinare mec diwar naheen bnaya gya hai jisse diwar na hone ke karan koi bhee gir sakte hai puliya ka lanmbai 32m. v chaudai 3m. gahrai 3m. hai our puliya feburary 2010 men banaya gya hai is puliya ki banane par bhi aisi istithi hai to 60lakh kharch karane ki kya jarurat tha v 60lakh kharch hone se uska jimedar koun hoga ?ये रिपोर्ट अमरसोता गावं के १४ वर्ष के अनिल कुमार खरवार ने लिखी है ,रिपोर्ट तो एकदम सही है ,,,कई जगह थोड़ी गड़बड़ी होगी ,, अनिल ने पहली बार लैपटॉप देखा है,,लकिन बस थोड़े ही प्रयाश से वो कम भर का कंप्यूटर सिख गया hai
first visiter in Astitav ,a school for angels
इस शुक्रवार(24-06-2011) को अस्तित्व में पहली विसिटर मेरी मम्मी है,वो स्कूल आई ,बच्चो को पढाया भी ,और खुश भी हुई ,,मम्मी ने अपना परिचय देने के बाद सभी बच्चो से उनका परिचय भी लिया ,सभी बच्चो ने अपना नाम बताया,और आश्चर्य की बात ये रही की स्कूल में दो बच्चे जो लगातार स्कूल आ रहे थे लेकिन स्कूल में एक शब्द भी नहीं बोलते थे,और आज तक मेरे कई बार पूछने के बाद भी अपना नाम नहीं बताया था ,,लेकिन उन बच्चो ने भी उनको अपना नाम बताया,,वो दो दिन स्कूल में रही ,,और सन्डे को चली गई,
Sunday, June 26, 2011
चिराग तले अँधेरा
चिराग तले अँधेरा ये कहावत अपने आप को चरितार्थ कर रहा है सोनभद्र में,,,सोनभद्र में ओबरा में बिजली उत्पादन होता है जो लगभग उत्तेर प्रदेश के जिलो में बिजली भेजते है लेकिन वही ओबरा के आस पास के लगभग ६०-७० km तक के गावं में बिजली नहीं है ,, बिजली तो क्या वहा अभी तक बिजली के खम्भे भी नहीं है,, यहाँ के कई गावों में अभी तक एक भी सरकारी योजनाये नहीं पहुची,,,,इसको तो मान सकते है की इन गावों में जाने का कोई ठीक ठाक रास्ता नहीं है और कोई अधिकारी वहा कभी निरिचन के लिए नहीं जाते है तो गावों के विकाश के लिए आये सभी रूपये भ्रस्टाचार देवता की बलि चढ़ गए होंगे ,,,,लेकिन बिजली तो वहा होनी ही चाहिए ,,अगर आप ये ब्लॉग पढ़ रहे है तो इसे शेयर करे ताकि ये खबर किसी प्रसासनिक अधिकारी तक पहुचे और इसके लिए कोई कारवाही करे ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,आपका बहुत बहुत धन्यबाद सहायता के लिए
Saturday, June 25, 2011
जहा के बच्चे दूध का स्वाद नहीं जानते
सारी दुनिया में बच्चे बोतल से या कटोरी चम्मच से या गिलास से दूध पीते है ,,,,जैसे ही दूध का दम बढ़ता है सबकी दिल की धड़कन बढ़ने लगती है ,,चारो तरफ हाहाकार मचने लगता है,,अब तो पैकेट के दूधो की भी बिक्री दिनों दिन बढाती ही जा रही है,,कई शहर तो इन्ही पैकेट पर पूरी तरह निर्भर हो गए है,,,पावडर के दूधो की भी अब कई कम्पनी हो चुकी है,,,,,,सुबह सुबह दूध की चाय के बिना तो दिन ही शुरू नहीं होता है ,,,दूध को एक पोषक आहार मन जाता रहा है शादियों से ,,,,बिना दूध के तो जीवन की कल्पना ही मुस्किल होती है, दूधो को लेकर बाज़ार में जबरदस्त कालाबाजारी चल रही है,,,,,दूधो की बिक्री के लिए उसमे मिलावट चल रही है ,,और लोग खूब बेच और खरीद रहे है,,, लकिन इन्ही सब में एक ऐसा भी गावं है जहा के बच्चे दूध का स्वाद ही नहीं जानते है ,,जहा पर लोगो न कभी चाय का इस्तेमाल ही नहीं करते है,,सोनभद्र के चोपन ब्लाक के पनारी ग्राम सभा में स्थित गावं अमरसोता के बच्चे कभी भी अपने आहार में दूध का प्रयोग नहीं करते है ,,,केवल ऐसा नहीं है की बच्चे ही दूध नहीं पीते है वह के बड़े भी दूध का इस्तेमाल नहीं करते है,आप ये मत सोच लीजियेगा की वहा गाय नहीं है, वहा गाय है जिनकी नंबर भी ठीक ठाक है ,,लकिन वहा के लोगो का मानना है की की हम अगर गाय का दूध निकालेंगे तो उनके बच्चे कमजोर ही जायेगे हम उनका दूध कैसे निकल सकते है,,जब मैंने शुरू में ये सुना तो मेरी आश्चर्य की सीमा ही नहीं रही,,क्योकि बचपन से ही हम दूध का इस्तेमाल करते रहे है ,,बड़े होने पर कम से कम दो बार चाय तो चाहिए ही ,,,लेकिन वहा यानि अमरसोता में न तो दूध मिलेगा न ही चाय,,,,,,,,,,,और अच्छी बात तो ये है की,,,, पता नहीं ये अच्छी बात है भी या नहीं की वहा के बच्चे को दूध की आदत ही नहीं है ,जहा के बच्चे दूध का स्वाद नहीं जानते ,,जहा के बच्चो को कोई docter दूध पीने की सलाह नहीं देता है जहा के बच्चे दूध के लिए नहीं रोते है ,,,,वो गावं अमरसोता है |
Thursday, June 16, 2011
आज का अनुभव
आज का अनुभव -
आज १६ जून को मै जब सुबह स्कूल पहुची तो मन थोड़ा उदास हुआ क्योकि स्कूल में केवल ७ ,८ बच्चे आये थे,,मै एकदम से कुर्सी पर बैठ गई और कई बाते दिमाग में आने लगी थी ,,,अभी कल ही मै लगभग बच्चो के घर गई थी ,,यहाँ पर घर बहुत दूर दूर होते है ,,हम मैदानी इलाको में रहने वाले लोगो के लिए पहाड़ पर चढ़ना बड़ा मुस्किल होता है,,यहाँ के लोगो को आदत है,,यहाँ के ३,४ साल के बच्चे भी मुझसे आगे आगे चलते है मै एकदम थक जाती हूँ पर पर उनको जरा भी थकान महशुस नहीं होती है,,कल मेरे साथ २ बच्चे गए थे ,,करीब ७-८ km हम लोग चले होंगे ,मेरी तो हालत खराब हो गई थी ,,इससे पहले मै एक दिन में एक घर ही जाती थी,,लेकिन कल सभी के यहाँ जाना चाहती थी,,,लेकिन कुछ घरो में ही जा पाए थे ,फिर वापस आ गई,,ये सोच कर की कल सभी बच्चे आयेंगे ,,लेकिन जब सुबह स्कूल में केवल कुछ ही बच्चो को देखा तो ,,मन बहुत खराब होने लगा था,,मै एकदम हतास हो गई,,,तभी एक बच्चे ने कहा की "दीदी आज गाना नहीं गायेंगे क्या?" मैंने कहा की क्यों नहीं चलो ,,फिर हम लोगो ने गोल घेरा बनाया और रोज की तरह "हम होंगे कामयाब"शुरू किया,जैसे ही हम लोगो ने गाना सुरु किया ,,धीरे धीरे बच्चे आने लगे और हमारा घेरा बढ़ने लगा ,,और हमारा घेरा आज इतना बढ़ा था जो की इससे पहले कभी नहीं बढ़ा था ,,अभी आधे घंटे पहले वाली मेरी उदासी कहा गायब हुई पता ही नहीं चला ,,फिर तो आज खूब जम के पढाई भी हुई और मस्ती भी हुई ,,आज स्कूल में ७० से ज्यादा बच्चे आये थे ,,,यहाँ के लोगो में पढाई को लेकर बिलकुल भी जागरूकता नहीं है,,केवल कुछ ही परिवार ऐसे है जो बच्चो को स्कूल भेजते है,और कुछ बच्चे अपने मन से ही आते है ,,इस तरह स्कूल में रोज लगभग ३०-४० बच्चे आ जाते है ,,बाकि के बच्चे,कभी आते है कभी नहीं आते है ,,
यहाँ पर बहुत बच्चे है आने के लिए ,,धीरे धीरे सभी आने लगेंगे ,,
स्कूल में ६ बच्चे,,फूलकुमारी,पनमती,शिवचरण,किस्मती,आशा,मंजू, ऐसे है जो अब धीरे धीरे हिंदी पढना सिख रहे है ,,बाकि के बच्चे अभी basic पढाई ही कर रहे है,,मै सोच रही हूँ की जुलाई से मै नर्सरी व् क्लास १ शुरु करू
आप अपनी राय दीजिये,,,,,,,,,,,,,,, क्या करना चाहिए ?
Sunday, June 12, 2011
Saturday, June 11, 2011
आज अस्तित्व को एक महिना हो गया
आज अस्तित्व को एक महिना हो गया
आज शनिवार को सभी बच्चो ने पढाई कम और मस्ती ज्यादा की ,,स्कूल पहुचाते ही बच्चो ने कहा की "दीदी आज खेलते है "मैंने कहा की ठीक है लकिन स्कूल में ही ,,चलो कुछ करते है ,,फिर मैंने देखा की बगल वाले घर में ही मिट्टी को गिला कर गुथा जा रहा था खपरैल बनाने के लिए ,मैंने बच्चो से कहा की चलो कुछ बनाते है मिट्टी से ,फिर क्या था बच्चे सुनते ही खुश हो गए ,फिर तो सभी कुछ न कुछ बनाने में ब्यस्त हो गए ,,मैंने देखा की अधिकतर बच्चो ने वोर्ड्स ही बनाये,, जब मैंने कहा की "अरे तुम लोग तो रोज ही इसे पढ़ते हो तो इसे क्यों बना रहे हो कुछ और बनाओ तो बच्चो ने घर,जानवर ,और किचेन के बर्तन बनाये,,मैंने भी एक घर और हिंदी का दूसरा शब्द ख बनाया |
फिर लैपटॉप से बच्चो को एक छोटी सी कार्टून वाली मूवी दिखाई ,उसके बाद थोड़ी सी पढाई के बाद छुट्टी हो गई
आज अस्तित्व को पूरा एक महिना पूरा हो गया ,,स्कूल एक महीने का हो
गया है ,,,,इस एक महीने में मुझे स्कूल दो बार सिफ्ट करना पड़ा है,पहले वाले स्कूल में जगह कम पड़ने लगी थी ,,स्कूल की फोटो आप सभी ने देखी होगी ,,,,,,दुसरे स्कूल की फोटो आज मै लगा रही हूँ जिसमे बच्चे मिट्टी के चित्र बना रहे है,,स्कूल में पुरे ५५ बच्चे हो चुके है ,,,और मेरे पास केवल 30 सलते ही है,,अब तो chalk भी ख़तम हो है,,चुकी यहाँ ओबरा में एक पहाड़ ऐसा है जिसका पत्थर एकदम सोफ्ट है ,और वो chalk का अचछा काम करता है,तो हर रविवार को जो भी बाज़ार जाता है वो ढेर सरे चालक लता है ,,,,लकिन स्लेट काम है ,,और बच्चे ज्यादा |एक महीने में काफी बच्चे हिंदी के शब्द और गिनती सिख चुके है ,,अब मुझे copy के साथ साथ बुक की भी जरुरत है ,,मेरे पास लैपटॉप तो है लकिन speaker नहीं है,
स्कूल में किसी भी तरह का poster नहीं है ,,यहाँ के बच्चे varanasi तक को नहीं जानते है तो बाकि की चीजे को अंदाज़ा लगाया जा सकता है ,,,मुझे कुछ posters भी खरीदने है,,,
फिलहाल मुझे पोस्टर्स,स्पेअकर ,कॉपी, पेंसिले ,रबर ,color ,खरीदने है
अगर आप हमारी सहायता कर सकते है तो प्ल्ज़ करीये व् ये ब्लॉग आप अपने साथियों को भेजे ताकि हमारी कुछ सहायता हो सके |
आपका बहुत बहुत धन्यवाद
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