Sunday, June 26, 2011

चिराग तले अँधेरा

चिराग तले अँधेरा ये कहावत अपने आप को चरितार्थ कर रहा है सोनभद्र में,,,सोनभद्र में ओबरा में बिजली उत्पादन होता है जो लगभग उत्तेर प्रदेश के जिलो में बिजली भेजते है लेकिन वही ओबरा   के आस पास के लगभग ६०-७० km तक के गावं में बिजली नहीं है ,, बिजली तो क्या वहा अभी तक बिजली के खम्भे भी नहीं है,, यहाँ   के कई   गावों  में अभी तक एक  भी सरकारी  योजनाये  नहीं पहुची,,,,इसको तो मान सकते है की इन गावों में जाने का कोई ठीक ठाक रास्ता नहीं है और कोई अधिकारी वहा कभी निरिचन  के लिए नहीं जाते है तो गावों के विकाश के लिए आये सभी रूपये भ्रस्टाचार देवता की बलि चढ़ गए होंगे ,,,,लेकिन बिजली तो वहा होनी ही चाहिए ,,अगर आप ये ब्लॉग पढ़ रहे है तो इसे शेयर करे ताकि ये खबर किसी प्रसासनिक अधिकारी तक पहुचे और इसके लिए कोई कारवाही करे ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,आपका बहुत बहुत धन्यबाद सहायता के लिए 

Saturday, June 25, 2011

जहा के बच्चे दूध का स्वाद नहीं जानते

सारी दुनिया में बच्चे बोतल से या कटोरी चम्मच से या गिलास से दूध पीते  है ,,,,जैसे ही दूध का दम बढ़ता है सबकी दिल की धड़कन बढ़ने लगती है ,,चारो तरफ हाहाकार मचने लगता है,,अब तो पैकेट के दूधो की भी बिक्री दिनों दिन बढाती ही जा रही है,,कई शहर तो इन्ही पैकेट पर पूरी तरह निर्भर हो गए है,,,पावडर  के दूधो की भी अब कई कम्पनी हो चुकी है,,,,,,सुबह सुबह दूध की चाय के बिना तो दिन ही शुरू नहीं होता है  ,,,दूध को एक पोषक आहार मन जाता रहा है शादियों से ,,,,बिना दूध के तो जीवन की कल्पना ही मुस्किल होती है,   दूधो को लेकर बाज़ार में जबरदस्त कालाबाजारी चल रही है,,,,,दूधो की बिक्री के लिए उसमे मिलावट चल रही है ,,और लोग खूब बेच और खरीद  रहे  है,,, लकिन इन्ही सब में एक ऐसा भी गावं है जहा के बच्चे दूध का स्वाद ही नहीं जानते है ,,जहा पर लोगो न कभी चाय का इस्तेमाल ही नहीं करते है,,सोनभद्र के चोपन ब्लाक के पनारी ग्राम सभा में स्थित   गावं अमरसोता के बच्चे कभी भी अपने आहार में दूध का प्रयोग  नहीं करते है ,,,केवल ऐसा नहीं है की बच्चे ही दूध नहीं पीते है वह के बड़े भी दूध का इस्तेमाल नहीं करते है,आप ये मत सोच लीजियेगा की वहा गाय नहीं है, वहा गाय है जिनकी नंबर भी ठीक ठाक है ,,लकिन वहा के लोगो का मानना है की की हम अगर गाय का दूध निकालेंगे तो उनके बच्चे कमजोर ही जायेगे हम उनका दूध कैसे निकल सकते है,,जब मैंने शुरू में ये सुना तो मेरी आश्चर्य की सीमा ही नहीं रही,,क्योकि बचपन से ही हम दूध का इस्तेमाल करते रहे है ,,बड़े होने पर कम से कम दो बार चाय तो चाहिए ही ,,,लेकिन वहा यानि अमरसोता में न तो दूध मिलेगा न ही चाय,,,,,,,,,,,और अच्छी बात तो ये है की,,,, पता नहीं ये अच्छी बात है भी या नहीं की वहा के बच्चे को दूध की आदत ही नहीं है ,जहा के बच्चे दूध का स्वाद नहीं जानते ,,जहा के बच्चो को कोई  docter दूध पीने की सलाह नहीं देता है जहा के बच्चे दूध के लिए नहीं रोते है ,,,,वो गावं अमरसोता है |  

Thursday, June 16, 2011

आज का अनुभव

आज का अनुभव  -
आज १६ जून को मै जब सुबह स्कूल पहुची तो मन थोड़ा उदास  हुआ  क्योकि स्कूल में केवल ७ ,८ बच्चे आये थे,,मै एकदम से कुर्सी पर बैठ गई और कई बाते दिमाग में आने लगी थी ,,,अभी कल ही मै लगभग बच्चो  के घर गई थी ,,यहाँ पर घर बहुत दूर दूर होते है ,,हम मैदानी इलाको में रहने वाले लोगो के लिए पहाड़ पर चढ़ना  बड़ा मुस्किल होता है,,यहाँ के लोगो को आदत है,,यहाँ के ३,४ साल के बच्चे भी मुझसे आगे आगे चलते है  मै एकदम थक जाती हूँ पर पर उनको जरा भी थकान महशुस नहीं होती है,,कल मेरे साथ २ बच्चे गए थे ,,करीब ७-८ km हम लोग चले होंगे ,मेरी तो हालत खराब हो गई थी ,,इससे पहले मै एक दिन में एक घर ही जाती थी,,लेकिन कल सभी के यहाँ जाना चाहती थी,,,लेकिन कुछ घरो में ही जा पाए  थे ,फिर वापस आ गई,,ये सोच कर की कल सभी बच्चे आयेंगे ,,लेकिन जब सुबह स्कूल में केवल कुछ ही बच्चो को देखा तो ,,मन बहुत खराब होने लगा था,,मै एकदम हतास हो गई,,,तभी एक बच्चे ने कहा की "दीदी आज गाना नहीं गायेंगे क्या?"  मैंने कहा की क्यों नहीं चलो ,,फिर हम लोगो ने गोल घेरा बनाया और रोज की तरह "हम होंगे कामयाब"शुरू किया,जैसे ही हम लोगो ने गाना सुरु किया ,,धीरे धीरे बच्चे आने लगे और हमारा घेरा बढ़ने लगा ,,और हमारा घेरा आज इतना बढ़ा था जो की इससे पहले कभी नहीं बढ़ा था ,,अभी आधे घंटे पहले वाली  मेरी उदासी कहा गायब हुई पता ही नहीं चला ,,फिर तो आज खूब जम के पढाई भी हुई और मस्ती भी हुई ,,आज स्कूल में ७० से ज्यादा बच्चे आये थे ,,,यहाँ के लोगो में पढाई को लेकर बिलकुल भी जागरूकता नहीं है,,केवल कुछ ही परिवार ऐसे है जो बच्चो को स्कूल भेजते  है,और कुछ बच्चे अपने मन से ही आते है ,,इस तरह स्कूल में रोज लगभग ३०-४० बच्चे आ जाते है ,,बाकि के बच्चे,कभी आते है कभी नहीं आते है ,,
यहाँ पर बहुत बच्चे है आने के लिए ,,धीरे धीरे सभी आने लगेंगे ,,
स्कूल में ६ बच्चे,,फूलकुमारी,पनमती,शिवचरण,किस्मती,आशा,मंजू,  ऐसे  है जो अब धीरे धीरे हिंदी पढना सिख रहे है ,,बाकि के बच्चे अभी basic पढाई ही कर रहे है,,मै सोच रही हूँ की जुलाई से मै नर्सरी व् क्लास १ शुरु करू 
आप अपनी राय दीजिये,,,,,,,,,,,,,,, क्या करना चाहिए ?   

Saturday, June 11, 2011

आज अस्तित्व को एक महिना हो गया

आज  अस्तित्व  को  एक  महिना  हो  गया  


 आज शनिवार को सभी बच्चो ने पढाई कम और मस्ती ज्यादा की ,,स्कूल पहुचाते ही बच्चो  ने कहा की "दीदी आज खेलते है "मैंने कहा की ठीक है लकिन स्कूल में ही ,,चलो कुछ करते है ,,फिर  मैंने देखा  की बगल  वाले  घर  में ही मिट्टी को गिला कर गुथा जा रहा था खपरैल बनाने के लिए ,मैंने बच्चो से कहा की चलो कुछ बनाते है मिट्टी से ,फिर क्या था बच्चे सुनते ही खुश  हो गए ,फिर तो सभी कुछ न कुछ बनाने में ब्यस्त हो गए ,,मैंने देखा की अधिकतर  बच्चो ने वोर्ड्स ही बनाये,, जब मैंने कहा की "अरे तुम लोग तो रोज ही इसे पढ़ते हो तो इसे क्यों बना रहे हो कुछ और बनाओ तो बच्चो ने घर,जानवर ,और किचेन के बर्तन बनाये,,मैंने भी एक घर और हिंदी का दूसरा शब्द ख बनाया |
फिर लैपटॉप से बच्चो को एक छोटी सी कार्टून वाली मूवी दिखाई ,उसके बाद थोड़ी सी पढाई के बाद  छुट्टी हो गई    
आज अस्तित्व को पूरा एक महिना पूरा हो गया ,,स्कूल एक महीने का हो 
 गया है ,,,,इस एक महीने में मुझे स्कूल दो बार सिफ्ट करना पड़ा है,पहले वाले स्कूल में जगह कम पड़ने लगी थी ,,स्कूल की फोटो आप सभी ने देखी होगी ,,,,,,दुसरे स्कूल की फोटो आज मै लगा रही हूँ जिसमे बच्चे मिट्टी के चित्र बना रहे है,,स्कूल में पुरे ५५ बच्चे हो चुके है ,,,और मेरे पास   केवल  30 सलते  ही है,,अब  तो chalk   भी ख़तम  हो है,,चुकी यहाँ  ओबरा में एक पहाड़ ऐसा है जिसका पत्थर एकदम सोफ्ट है ,और वो chalk का अचछा काम करता है,तो हर रविवार को जो भी बाज़ार जाता है वो ढेर सरे चालक लता है ,,,,लकिन स्लेट काम है ,,और बच्चे ज्यादा |
एक महीने में काफी बच्चे हिंदी के शब्द और गिनती  सिख  चुके है ,,अब मुझे copy के साथ साथ बुक की भी जरुरत है ,,मेरे पास लैपटॉप तो है लकिन speaker नहीं है,
स्कूल में किसी  भी तरह  का poster नहीं है ,,यहाँ के बच्चे varanasi तक  को नहीं जानते  है तो  बाकि  की चीजे  को अंदाज़ा  लगाया  जा सकता  है ,,,मुझे कुछ posters भी खरीदने  है,,,
फिलहाल मुझे पोस्टर्स,स्पेअकर ,कॉपी, पेंसिले ,रबर ,color ,खरीदने है
अगर आप हमारी सहायता कर सकते है तो प्ल्ज़ करीये व् ये ब्लॉग आप अपने साथियों को भेजे ताकि हमारी कुछ  सहायता हो सके |
आपका बहुत बहुत धन्यवाद 






































Friday, June 10, 2011

Astitav: जिंदगी अमरसोता कीजिंदगी अमरसोता की बड़े ही मज़ेदा...

Astitav:
जिंदगी अमरसोता कीजिंदगी अमरसोता की बड़े ही मज़ेदा...
: "जिंदगी अमरसोता की जिंदगी अमरसोता की बड़े ही मज़ेदार होती है सुबह ५ बजे तक उठाना होता है फिर फ्रेश होने के बाद ७ बजे तक स्कूल पहुचना फिर १० ..."

जिंदगी अमरसोता की

जिंदगी अमरसोता की बड़े ही मज़ेदार होती है सुबह ५ बजे तक उठाना होता है फिर फ्रेश होने के बाद ७ बजे तक स्कूल पहुचना फिर १० बजे तक बच्चो  की छुट्टी फिर १० -१५ लडकिया और औरते आती है १२ -१२.३० तक उनकी पढाई होती है फिर घर आकर  खाना  खाना  और फिर अपनी   प्यारी   सी   कोठरी में  घुस जाना क्योकि यहाँ   अभी इतनी  गर्मी  है की बहार  निकलना  बहुत  मुस्किल  होता है ,फिर ५ बजे नदी  पर  जाकर  रोज  नहाना  ,1,2 घंटे  ,अभी  तक मुझे  तैरना  नहीं  आता  जल्दी  सिख  जाउंगी,,आज तो मै नदी से पानी भी लेकर आई ,पहले तो नदी तक ही जाने में मै थक जाती यही लकिन अब आदत हो गई है ,फिर घर आकर बच्चो के साथ खेलना और रात में भी कुछ औरते padthi है फिर खाना खाना और अगर नेट ठीक से काम करता है तो  नेट से थोड़ी देश दुनिया की खबर मिल जाती है,,