Sunday, August 7, 2011

एक बहुत ही पुरानी और पिछड़ी हुई नस्ल

मनुष्यों  की  एक बहुत ही पुरानी और  पिछड़ी हुई नस्ल  के साथ आज कल मै रह रही हूँ,,जिसे अभी तक technology का वैरस नहीं लगा है,और बजार बहुत ही सिमित मात्रा में अपनी पहुच बना पाया है,,,जिन संसाधनों के बगैर नेई नसल के लोग जी भी नहीं पाएंगे उन संसाधनों को ये पुराणी नस्ल ने ना ही देखा है ना ही उनके बारे में सुना है,,यहाँ रहते हुए मुझे ३ महीने होने जा रहे है और अक्सर मै सोचती हूँ की अगर इनके घरो में से कुछ बाज़ार के सामान निकाल दे तो पक्का २०० या ३०० साल पहले के आदिवासी ऐसे ही रहते होंगे,
कभी कभी तो मुझे लगता है की पुरात्तव बिभाग को यही बुलवा लेना चाहिए ताकि वो अपनी शोध आदिवासियों के बारे में पूरी कर पाए ,,,,,,,जब मै यहाँ आई थी तो मैंने इसे सिर्फ एक पिछड़ा हुआ इलाका माना था ,,लेकिन यहाँ आकर पता चल रहा की जैसे मैंने हड़प्पा या मोहनजोदड़ो जैसे किसी चीज की खोज कर ली है,,,,,,और मेरे आश्चयर का ठिकाना ही नही रहता है,,,,,,,,,,,,,,मुझे मालूम है की कोई अकेली जगह नहीं है जहा मै रह रही हूँ ऐसी हजारो गावं है यहाँ ,,,,मेरे दिमाग में तो तो ये सब देख के यही आता है की ये" ये भारत की असफल लोकतान्त्रिक व्यवस्था "का जीता जाता साबुत है ,,,,,और इस व्यवस्था ने एक भारत में हजारो कई ऐसे नसले पैदा कर दी है जो अव्यवस्था का कारण है,,,,,,,,,,,,,,,,इसे तो मै भारत का बिकलांग  विकाश ही कहना पसंद करुँगी '

1 comment:

  1. hmn..very sad...but tum ho na wahan tho vikas jaruru hoga..main tumharey saatha hu..

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